Tuesday, 25 December 2018

Sri Mahishasuramardini stotram - Sanskrit


श्री महिषासुरमर्दिनि स्तॊत्रं

अयिगिरिनंदिनि नंदितमॆदिनि विश्वविनॊदिनि नंदनुतॆ
गिरिवरविंध्य शिरॊधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुतॆ
भगवति हॆ शितिकंठकुटुंबिनि भूरिकुटुंबिनि भूरिकृतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरतॆ
त्रिभुवनपॊषिणि शंकरतॊषिणि किल्बिषमॊषिणि घॊषरतॆ
दनुजनिरॊषिणि दुर्दमरॊषिणि दुर्दमशॊषिणि सिंधुसुतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥२॥

अयि जगदंब मदंब कदंबवनप्रियवासिनि हासरतॆ
शिखरिशिरॊमणि तुंगहिमालयशृंगनिजालय मध्यगतॆ
मधुमधुरॆ मधुकैटभभंजिनि कैटभभंजिनि रासरतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥३॥

अयि शतखंड विखंडितरुंड वितुंडितशुंड गजाधिपतॆ
रिपुगजगंड विदारणचंड पराक्रमशुंड मृगाधिपतॆ
निजभुजदंड निपातितचंडनिपातितमुंड भाटधिपतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥४॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधॊदित दुर्धरनिर्जर शक्तिबृतॆ
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपतॆ
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मद दानवदूतकृतांतमतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥५॥

अयि शरणागतवैरिवधूवर वीरवराभयदायकरॆ
त्रिभुवनमस्तक शूलविरॊधि शिरीधिकृतामल शूलकरॆ
धुमिधुमितामर दुंदुभिनाद मुहुर् मुखरीकृत दिङ्मकरॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥६॥

अयि निजहुंकृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलॊचनधूम्रशतॆ
समरविशॊषित शॊणितबीजसमुद्भवशॊणित बीजलतॆ
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहवतर्पित भूत पिशाचपतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥७॥

धनुरनुसंग रणक्षणसंग परिस्फुरदंग नटत्कटकॆ
कनकपिशंगपृषत्कनिषंगरसद्भटशृंग हतावटुकॆ
कृतचतुरंग बलक्षितिरंग घटद्भहुरंग रटद्भटुकॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥८॥

जय जय जप्यजयॆजयशब्दपरस्तुति तत्पर विश्वनुतॆ
भणभणभिंजिमि भींकृत नूपुर सिंजित मॊहित भूतपतॆ
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटित नाट्य सुगान रतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥९॥

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनॊहर कांतियुतॆ
श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृतॆ
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१०॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरतॆ
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक भिल्लिकभिल्लिक वर्गवृतॆ
सितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललितॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥११॥

अविरलगंड गलन्मदमॆदुर मत्तमतंगज राजपतॆ
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयॊनिधि राजसुतॆ
अयि सुदतीजन लालसमानस मॊहनमन्मथ राजसुतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१२॥

कमलदलामल कॊमलकांतिकलाकलितामल भाललतॆ
सकलविलास कलानिलयक्रम कॆलिचलत्कल हंसकुलॆ
अलिकुलसंकुल कुवलयमंडल मौलिमिलद् बहुलालिकुलॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१३॥

कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कॊकिल मंजिमतॆ
मिलितपुलिंद मनॊहरगुंजित रंजितशैल निकुंजगतॆ
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसंभृत कॆलितलॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१४॥

कटितटनीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्ररुचॆ
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चंद्ररुचॆ
जितकनकाचल मौलिपदॊर्जित निर्भरकुंजर कुंभकुचॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१५॥

विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैक नुतॆ
कृतसुरतारक संगरतारक संगरतारक सूनुसुतॆ
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१६॥

पदकमलं करुणानिलयॆ वरिवस्यति यॊनुदिनं शिवॆ
अयि कमलॆ कमलानिलयॆ कमलानिलयः कथं भवॆत्
तव पदमॆव परंपदमित्यनुशीलयतॊ मम किं शिवॆ           
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१७॥

कनकलसत्कल सिंधुजलैरनु सिंजिनुतॆ गुण रंगभुवं
भजति किं शचीकुचकुंभ तटीपरिरंभसुखानुभवं
तवचरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासिशिवं
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१८॥

तवविमलॆंदुकुलं वदनॆंदुमलं सकलं ननुकूलयतॆ
किमु पुरुहूतपुरींदुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियतॆ
मम तु मतं शिवनामधनॆ भवती कृपया किमुत क्रियतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥१९॥

अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमॆ
अयि जगतॊ जननि कृपयासि यथासि तथानुमितासिरतॆ
यदुचितमत्र भवत्युररी कुरुता दुरुताप मपा कुरुतॆ
जय जय हॆ महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुतॆ ॥२०॥

श्री महिषासुरमर्दिनि स्तॊत्रं संपूर्णं

श्री जगदांबार्पणमस्तु

No comments:

Post a Comment

Sri Srinivasa Mangalam - Sanskrit

। श्री श्रीनिवास मंगळं । सर्वमंगलसंभूतिस्थानवॆंकटभूधरॆ । नित्य क्लृप्त निवासाय श्रीनिवासाय मं...