Tuesday, 25 December 2018

Sri Raghavendra Astottara Shatanamavali - Sanskrit


। श्री राघवॆंद्राष्टॊत्तर शतनामावळि ।

ऒं स्ववाग्दॆवता सरसद्भक्त विमलीकर्त्रॆ नमः
ऒं श्रीराघवॆंद्राय नमः
ऒं सकलप्रदात्रॆ नमः
ऒं भक्ताघसंभॆदन वृष्टिवज्राय नमः
ऒं क्षमासुरॆंद्राय नमः
ऒं हरिपाद कंजनिषॆवणाल्लब्ध समस्त संपदॆ नमः
ऒं दॆवस्वभावाय नमः
ऒं दिविजद्रुमाय नमः
ऒं इष्टप्रदात्रॆ नमः
ऒं भवस्वरूपाय नमः                     ॥१०॥
ऒं भवदुःखतूल संघाग्निचर्याय नमः
ऒं सुखधैर्यशालिनॆ नमः
ऒं समस्त दुष्टग्रहनिग्रहॆशाय नमः
ऒं दुरत्ययॊपप्लव सिंधु सॆतवॆ नमः
ऒं निरस्तदॊषाय नमः
ऒं निरवद्यवॆषाय नमः
ऒं प्रत्यर्थिमूकत्वनिदान भाषाय नमः
ऒं विद्वत्परिज्ञॆयमहाविशॆषाय नमः
ऒं वाग्वैखरीनिर्जितभव्यशॆषाय नमः
ऒं संतानसंपत्परिशुद्ध भक्ति विज्ञान वाग्तॆह सुपाटवादिदात्रॆ नमः ॥२०॥
ऒं शरीरॊत्थसमस्तदॊषहंत्रॆ नमः
ऒं श्री गुरुराघवॆंद्राय नमः
ऒं तिरस्कृत सुरनदी जलपादॊदकमहिमवतॆ नमः
ऒं दुस्तापत्रयनाशनाय नमः
ऒं महावंद्यासुपुत्रप्रदाय नमः
ऒं व्यंगस्वंग समृद्धिदाय नमः
ऒं ग्रहमहापापापहाय नमः
ऒं दुरितकानन दावभूतस्वभक्तदर्शनाय नमः
ऒं सर्वतंत्र स्वतंत्राय नमः
ऒं श्री मध्वमत वर्धनाय नमः                   ॥३०॥
ऒं विजयींद्र कराब्जॊत्थ सुधींद्र वरपुत्रकाय नमः
ऒं यतिराजॆ नमः
ऒं गुरुवॆ नमः
ऒं भयापहाय नमः
ऒं ज्नानभक्तिसुपुत्रायुर्यशः श्रीपुण्यवर्धनाय नमः
ऒं प्रतिवादि जयस्वांत भॆद जिह्वादराय नमः
ऒं सर्वविद्याप्रवीणाय नमः
ऒं अपरॊक्षिकृतश्रीशाय नमः
ऒं समुपॆक्षिकृत भावजाय नमः
ऒं अपॆक्षितप्रदात्रॆ नमः                                   ॥४०॥
ऒं दयादाक्षिण्य वैराग्य वाक्पाटन मुखांकिताय नमः
ऒं शापानुग्रहशक्ताय नमः
ऒं अज्ञान विस्मृतिभ्रांतिसंशयापस्मृतिक्षयादि दॊशनाशकाय नमः
ऒं अष्टाक्षर जपॆष्टार्थ प्रदात्रॆ नमः
ऒं आत्मात्मीय समुद्भवकायज दॊषहंत्रॆ नमः
ऒं सर्वपुमर्थप्रदात्रॆ नमः
ऒं कालत्रयप्रार्थनकर्त्रैहिका मुक्ष्मिकसर्वॆष्टप्रदात्रॆ नमः
ऒं अगम्य महिम्नॆ नमः
ऒं महायशसॆ नमः
ऒं श्रीमध्वमत दुग्धाब्धिचंद्राय नमः                   ॥५०॥
ऒं अनघाय नमः
ऒं यथाशक्तिप्रदक्सिण कर्त्रेसर्वयात्रा फलदात्रॆ नमः
ऒं शिरॊधारण सरवतीर्थस्नानफलदातृस्ववृंदावनगतजलाय नमः
ऒं करण सर्वाभीष्टदात्रॆ नमः
ऒं संकीर्तनॆन वॆदाद्यर्थज्ञानदात्रॆ नमः
ऒं संसारमग्नजनॊद्धारकर्त्रॆ नमः
ऒं कुष्टादिरॊग निवर्तकाय नमः
ऒं अंधदिव्यदृप्टिदात्रॆ नमः
ऒं ऎडमूक वाक्पतित्वप्रदात्रॆ नमः
ऒं पूर्णायुः प्रदात्रॆ नमः                    ॥६०॥
ऒं पूर्णसंपत्तिदात्रॆ नमः
ऒं कुक्षिगतसर्व दॊषघ्नॆ नमः
ऒं पंगुखंजसमीचीनावयवदात्रॆ नमः
ऒं भूत प्रॆत पिशाचादि पीडाघ्नॆ नमः
ऒं दीपसंयॊजनाद् ज्ञानपुत्रदात्रॆ नमः
ऒं दिव्यज्ञान भक्त्यादि वर्धनाय नमः
ऒं सर्वाभीष्टदाय नमः
ऒं राजचॊर महाव्याघ्र सर्प नक्रादिपीडाघ्नॆ नमः
ऒं स्वस्तॊत्र पठनॆष्टार्थ समृद्धिदाय  नमः
ऒं उद्यत्प्रद्यॊतनन्यॊत धर्मकूर्मासनस्थिताय नमः ॥७०॥
ऒं खद्य खद्यॊतनद्यॊत प्रतापाय नमः
ऒं श्रीराम मानसाय नमः
ऒं धृतकाषायवसनाय नमः
ऒं तुलसीहारवक्षसॆ नमः
ऒं दॊर्दंड विलसद्धंड कमंडलु विराजिताय नमः
ऒं अभयज्ञान मुद्राक्षमाला शीलकरांबुजाय नमः
ऒं यॊगॆंद्र मध्यपादाब्जाय नमः
ऒं पापाद्रि पाटन वज्राय नमः
ऒं क्षमासुरगणाधीशाय नमः
ऒं हरिसॆवालब्धसर्वसंपदॆ नमः                  ॥८०॥
ऒं तत्त्वप्रदर्शकाय नमः
ऒं इष्टप्रधान कल्पद्रुमाय नमः
ऒं श्रुत्यर्थभॊधकाय नमः
ऒं भव्यकृतॆ नमः
ऒं बहुवादि विजयिनॆ नमः
ऒं पुण्यवर्धन पादाब्जाभिषॆक जलसंचयाय नमः
ऒं द्युनदीतुल्य सद्गुणाय नमः
ऒं भक्ताघविध्वंसकरनिजमूर्ति प्रदर्शकाय नमः
ऒं जगद्गुरवॆ नमः
ऒं कृपानिधयॆ नमः                      ॥९०॥
ऒं सर्वशास्त्रविशारदाय नमः
ऒं निखिलॆंद्रिय दॊषघ्नॆ नमः
ऒं अष्टाक्षर मनूदिताय नमः
ऒं सर्वसौख्यकृतॆ नमः
ऒं मृतपॊत प्राणदात्रॆ नमः
ऒं वॆदिस्थपुरुतॊज्जीविनॆ नमः
ऒं वह्निस्थमालिकॊद्धर्त्रॆ नमः
ऒं समग्रटीकाव्याख्यात्रॆ नमः
ऒं भाट्टसंग्रहकृतॆ नमः
ऒं सुधापरिमळॊद्धर्त्रॆ नमः        ॥१००॥
ऒं अपस्मारापहर्त्रॆ नमः
ऒं उपनिषत्खंडार्थकृतॆ नमः
ऒं ऋग्व्याख्यान कृदाचार्याय नमः
ऒं मंत्रालय निवासिनॆ नमः
ऒं न्यायमुक्तावलीकर्त्रॆ नमः
ऒं चंद्रिकाव्याख्याकर्त्रॆ नमः
ऒं सुतंत्रदीपिकाकर्त्रॆ नमः
ऒं गीतार्थसंग्रहकृतॆ नमः

। सिद्थार्थौ गुरुवासरॆ हरिदिनॆ श्री श्रावणॆ मासकॆ ।
। पक्षॆ चॆंदुविवर्धनॆ शुभदिनॆ श्री राघवॆंद्रार्पिता ॥
रामार्यस्य सुतॆन मंत्रसदनॆ श्री राघवॆंद्रार्पिता ॥
वॆदाव्यास सुनामकॆन च गुरॊः प्रीत्यै कृतं श्रीशयॊः ॥
ऎतान्यष्टॊत्तर शतनामानि श्री श्री राघवॆंद्र गुरुस्तॊत्र कवचयॊः श्रीमदप्पणाचार्य कृतयॊः स्थितान्नॆवा लॊड्य ऎकीकृतानिन स्वकपॊलकल्पित नवनामैदमपि

॥ भूयाच्छं सर्वॆभ्यः ॥

॥ इति श्री राघवॆंद्रा अष्टॊत्तर शतनामावळि संपूर्णं ॥

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